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Monday, 6 March 2017

बाबरी मामले में आडवाणी समेत 13 पर चल सकता है केस, SC 22 को देगा फैसला

 
नई दिल्ली. अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचा गिराए जाने के मामले में लालकृष्ण आडवाणी, उत्तर प्रदेश के सीएम रहे कल्याण सिंह, उमा भारती, मुरली मनोहर जोशी समेत बीजेपी और वीएचपी के 13 नेताओं के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने का केस फिर से चल सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस ओर इशारा किया है। कोर्ट 22 मार्च को इस मामले में ऑर्डर देगा। टेक्निकल बेस पर राहत नहीं दी जा सकती...
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- जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नरीमन की बेंच सीबीआई और हाजी महबूब अहमद की पिटीशन पर सुनवाई कर रही थी।
- कोर्ट ने कहा, "हम टेक्निकल ग्राउंड पर राहत देना मंजूर नहीं कर सकते। इस मामले में सप्लिमेंट्री चार्जशीट को मंजूरी देते हैं।"
दोनों केस की सुनवाई एक जगह क्यों ना की जाए-SC?
- विवादित ढांचा गिराए जाने पर दो FIR दर्ज की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 13 लोगों को केवल टेक्निकल ग्राउंड पर राहत दे दी गई।
- SC ने कहा, "हम दोनों केसेज को मिलाकर ज्वाइंट ट्रायल क्यों नहीं कर सकते हैं? क्यों न रायबरेली वाला मामला लखनऊ ट्रांसफर कर दिया जाए?''
- बता दें कि इस मामले में कारसेवकों के खिलाफ मेन केस लखनऊ की ट्रायल कोर्ट में चल रहा है।
- इसपर वकील ने कहा, "दोनों मामलों में अलग-अलग लोगों के नाम आरोपियों के तौर पर दर्ज हैं। दो अलग-अलग जगहों पर ट्रायल एडवांस स्टेज में पहुंच चुका है।"
लोअर कोर्ट ने हटाए थे आरोप
- बाबरी ढांचा ढहाए जाने के बाद यूपी के सीएम रहे कल्याण सिंह, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती समेत बीजेपी-वीएचपी के 13 लीडर्स पर आपराधिक साजिश रचने (120बी) का केस दर्ज किया गया था।
- बाद में रायबरेली की लोअर कोर्ट ने सभी पर से ये आरोप हटाने का आॅर्डर दिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी लोअर कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था।
- सीबीआई ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी। इसी की सुनवाई चल रही है। पिटीशन में इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के ऑर्डर को खारिज करने की मांग की गई है।
सीबीआई ने क्या कहा था कोर्ट से?
- सितंबर 2015 को सुनवाई के दौरान सीबीआई ने SC से कहा था,"एजेंसी के फैसले किसी से प्रभावित नहीं होते। बीजेपी नेताओं के खिलाफ क्रिमिनल कॉन्स्पिरेसी के चार्ज सीबीआई के कहने पर नहीं हटाए गए। सीबीआई के फैसले पूरी तरह स्वतंत्र होते हैं।"
- "एजेंसी के सभी फैसले तथअयों और कानून को ध्यान में रखकर लिए जाते हैं। इस बात का सवाल ही नहीं उठता कि कोई व्यक्ति या संस्था एजेंसी के फैसलों को प्रभावित कर सके।

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